धार्मिक साहित्य की ध्यान देने योग्य बातें:-सभी धर्म-मतों के मानने वालों के विश्वास और उनके आचार विचार की जानकारी सबके लिए एक ही मंच पर उपलब्ध कराना इस मंच का मक़सद है ताकि सभी लोग आपस में एक दूसरे के बारे में जान सकें। जब लोग एक दूसरे के बारे में जानेंगे तो एक दूसरे की भावनाओं को समझने में भी आसानी होगी और उनके साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार भी किया जा सकेगा। इसी के साथ उन बातों से भी बचा जा सकेगा, जिनके कारण दूसरों की भावनाएं आहत होती हैं और समाज में नफ़रतें फैलती हैं। नफ़रत को मिटाकर मुहब्बत के फूल इस गुलिस्तां में खिलाने के लिए ही यह मंच बनाया गया है। यहां हरेक आदमी अपने धार्मिक-दार्शनिक मत को व्यक्त कर सकता है और पूछने वाला भी प्रश्न पूछ सकता है लेकिन यह सारा कहना-सुनना सभ्यता के दायरे में ही होना चाहिए। इस मंच का मक़सद शास्त्रार्थ और बहस करना नहीं है। इसलिए यहां जीत हार का भी कोई सवाल नहीं है। किसी भी सवाल का जवाब देने के लिए पोस्ट लेखक बाध्य नहीं है। यह साहित्यकारों की एक सम्मानित सभा है, जिसमें वे अपने अनुभव साझा कर रहे हैं, जिनसे सभी का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। बहरहाल सबसे प्रेम करना हम सबके लिए ज़रूर लाज़िमी है। इंसानियत के सभी उत्कृष्ट गुणों को जगाने और बढ़ाने के लिए ही इस धार्मिक साहित्य का सृजन किया जा रहा है। यहां केवल वही साहित्य संकलित किया जाएगा जो सीधे या परोक्ष, किसी भी रूप में इंसान को एक अच्छा इंसान बनाकर समाज के लिए उपयोगी बना सके। जो इस शर्त को पूरा न करता हो, उस साहित्य के लिए यह मंच नहीं है।

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

प्रगति का लक्षण -श्री आनन्दमूर्ति

Source : http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-242306.htmlबाधा को लांघकर आगे बढ़ने की चेष्टा करना जीवों का स्वाभाविक धर्म है। ऐसी बात नहीं है कि यह मनुष्य की ही विशेषता है। किंतु यह जो बंधनों से जुड़ी बाधाएं हैं, इन पर जीत हासिल करने के लिए केवल शारीरिक शक्ति काफी नहीं है, इसके लिए मानसिक व आध्यात्मिक शक्ति की भी जरूरत है। पशुओं में शारीरिक शक्ति बहुत रहते हुए भी वे मानसिक शक्ति के अभाव के कारण बहुत दूर तक आगे बढ़ नहीं पाते। और आध्यात्मिक शक्ति के नाम पर तो उनके पास कुछ है ही नहीं। मान लीजिए, एक बाधा आई। पशु शक्ति द्वारा उस बाधा को पार करना चाहेगा। मनुष्य चिंतन करेगा, सोचेगा, बुद्धि की सहायता से कोई नया उपाय निकालकर बाधा को लांघकर चला जाएगा।
यह स्मरण रखना होगा कि यह जो बाधा है, इससे भी बड़ी बाधा है- मानसिक, आध्यात्मिक। किंतु मानसिक क्षेत्र में मनुष्य की मुख्य बाधा है अंधविश्वास। मनुष्य बड़ा होकर, लिखना-पढ़ना सीखकर भी इसके बंधन से मुक्त नहीं हो पाता। वह अक्सर असहाय होकर उसके सामने आत्मसमर्पण करता है। मैं जानता, समझता हूं अलग चीज है और करता हूं अलग तरह का काम। क्यों दूसरी तरह का काम करता हूं? क्योंकि उसका विरोध करने लायक मानसिक साहस नहीं है। हम समझ जाते हैं कि अमुक रोग होने पर अमुक दवा उचित है। करते भी ऐसा ही हैं, किंतु भय भी है। इसलिए हम विशेष देवी-देवता की छिप-छिपकर पूजा भी करते हैं। यह एक भारी दुर्बलता है। इस दुर्बलता को अंग्रेजी में कहते हैं डॉग्मा।इसके बाद अंतिम बाधा है आध्यात्मिक जगत की बाधा। इस बाधा के खिलाफ जोरदार जंग छेड़ने की आवश्यकता है। इसके लिए जरूरी है कि दुनिया भर के लोगों में भागवत को प्रतिष्ठापित किया जाए, तभी आध्यात्मिक बाधाएं दूर हो सकेंगी। इन बाधाओं के दूर होने पर ही मनुष्य परम मुक्ति की राह पर जा सकेगा। यही है मनुष्य की प्रगति का लक्षण।