धार्मिक साहित्य की ध्यान देने योग्य बातें:-सभी धर्म-मतों के मानने वालों के विश्वास और उनके आचार विचार की जानकारी सबके लिए एक ही मंच पर उपलब्ध कराना इस मंच का मक़सद है ताकि सभी लोग आपस में एक दूसरे के बारे में जान सकें। जब लोग एक दूसरे के बारे में जानेंगे तो एक दूसरे की भावनाओं को समझने में भी आसानी होगी और उनके साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार भी किया जा सकेगा। इसी के साथ उन बातों से भी बचा जा सकेगा, जिनके कारण दूसरों की भावनाएं आहत होती हैं और समाज में नफ़रतें फैलती हैं। नफ़रत को मिटाकर मुहब्बत के फूल इस गुलिस्तां में खिलाने के लिए ही यह मंच बनाया गया है। यहां हरेक आदमी अपने धार्मिक-दार्शनिक मत को व्यक्त कर सकता है और पूछने वाला भी प्रश्न पूछ सकता है लेकिन यह सारा कहना-सुनना सभ्यता के दायरे में ही होना चाहिए। इस मंच का मक़सद शास्त्रार्थ और बहस करना नहीं है। इसलिए यहां जीत हार का भी कोई सवाल नहीं है। किसी भी सवाल का जवाब देने के लिए पोस्ट लेखक बाध्य नहीं है। यह साहित्यकारों की एक सम्मानित सभा है, जिसमें वे अपने अनुभव साझा कर रहे हैं, जिनसे सभी का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। बहरहाल सबसे प्रेम करना हम सबके लिए ज़रूर लाज़िमी है। इंसानियत के सभी उत्कृष्ट गुणों को जगाने और बढ़ाने के लिए ही इस धार्मिक साहित्य का सृजन किया जा रहा है। यहां केवल वही साहित्य संकलित किया जाएगा जो सीधे या परोक्ष, किसी भी रूप में इंसान को एक अच्छा इंसान बनाकर समाज के लिए उपयोगी बना सके। जो इस शर्त को पूरा न करता हो, उस साहित्य के लिए यह मंच नहीं है।

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु, एक आदर्श

विश्व शांति और मानव एकता के लिए हज़रत अली की ज़िंदगी सचमुच एक आदर्श है


तेरह रजब के मौक़े पर आओ ये अहद लें
मसलक हो ख्वाह  कोई भी मिलकर रहेंगे हम
अल्लाह और क़ुरआनो नबी हैं हमारे एक 
एक दूसरे पे कुफ़्र के फ़तवे न देंगे हम

    -असद रज़ा
तेरह रजब-अरबी माह रजब की तेरह तारीख़
अहद-संकल्प, ख्वाह-चाहे
कुफ़्र-अधर्म, नास्तिक्य, फ़तवा-धार्मिक निर्णय

हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु तेरह रजब के दिन पैदा हुए थे। जब भी सही और ग़लत के बीच फ़ैसले की नौबत आई तो उन्होंने हमेशा सत्य और न्याय को ही चुना। बचपन से ही उनका यह मिज़ाज था। इसी अभ्यास के कारण उनका चरित्र ऐसा बन गया था कि उनसे जीवन में कभी फ़ैसले की कोई ग़लती नहीं हुई और यही वजह है कि उनकी ज़िन्दगी में भी हमें कोई ग़लती नज़र नहीं आती। उनकी इस बात की गवाही उनसे युद्ध करने वालों ने भी दी है। अपने ख़ून के प्यासों पर भी उन्होंने कभी कुफ़्र का फ़तवा लागू नहीं किया। उनकी ज़िंदगी लोगों को शांति, एकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाने में ही गुज़र गई और एक रोज़ जब वह मालिक का नाम ले रहे थे तो उनके सिर पर एक दुश्मन ने तलवार मारी और कुछ दिन बाद हज़रत अली रज़ि. शहीद हो गए। विश्व शांति और मानव एकता के लिए उनकी ज़िंदगी सचमुच एक आदर्श है।
इस विषय में ज़्यादा जानने के लिए आप देख सकते हैं :

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम जीवन परिचय व चारित्रिक विशेषताऐं

5 टिप्‍पणियां:

Bharat Bhushan ने कहा…

आशा करता हूँ कि आपका यह प्रयास मानवता के लिए ज़रूरी विचारों और भावनाओं का संकलन करने में महत्वपूर्ण कार्य करेगा. शुभकामनाएँ.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कुर्बानी कभी बेकार नहीं जाती!
ईदुलजुहा भी यही सन्देश देती है!

Pushpendra Singh ने कहा…

bahut achha aalekh!

ज्योति सिंह ने कहा…

तेरह रजब के मौक़े पर आओ ये अहद लें
मसलक हो ख्वाह कोई भी मिलकर रहेंगे हम
अल्लाह और क़ुरआनो नबी हैं हमारे एक
एक दूसरे पे कुफ़्र के फ़तवे न देंगे हम
sundar sandesh aur post .

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।