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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

हिंदुओं के रत्न, मुसलमानों के नगीने

सुहेल वहीद
फिल्म उमराव जान के एक सीन में फारुख शेख रेखा के बालों में आहिस्ता-आहिस्ता ऊँगलियाँ फिरा रहे हैं। इस बेहद खूबसूरत और रोमांटिक सीन में रेखा की काली जुल्फों के साथ जिस चीज पर कैमरा फोकस कर रहा है वह फारुख शेख के हाथ की एक ऊँगली में जगमगा रहा नैशापुरी फिरोजा है। लखनऊ में शूटिंग के दौरान नवाब मीर जाफर अब्दुल्ला की ऊँगली से उतरवाकर फिल्म के निर्देशक मुजफ्फर अली ने यह अँगूठी खास तौर पर फारुख शेख को पहनाई थी।
मुजफ्फर अली शिया मुसलमान हैं और कहीं न कहीं वह यह जरूर दिखाना चाहते थे कि शियाओं की एक पहचान फिरोजा रत्न भी है क्योंकि चौथे खलीफा हजरत अली और आठवें इमाम रजा फिरोजे की अँगूठी पहनते थे। ईरान स्थित नौशापुर का फिरोजा सबसे बेहतरीन माना जाता है। इराक के नजफ में हजरत अली के रौजे और ईरान के मशद में इमाम रजा की कब्र से मस (छुआ) कर फिरोजा पहनना शियाओं में सवाब (पुण्य) माना जाता है।
फिरोजे का इस्तेमाल सोने के जेवरों में भी हमेशा से खूब होता आया है। इसकी नीली चमक पीले सोने में खूब फबती है। इसे जवाहरात की श्रेणी में दूसरे नंबर पर रखा गया है। इस पर न तो तेजाब का असर होता है और न आग में पिघलता है। इसे पहनने से दिल के मर्ज में फायदा होता है। तबीयत को राहत और ताजगी बख्शता है। आँखों की रोशनी बढ़ाता है और गुर्दे की पथरी निकालता है। साफ और खुली फिजा में इसका रंग और ज्यादा खिल जाता है।
फिरोजा ही नहींअकीक पहनना भी मुसलमानों में सवाब माना जाता है। मक्का में संगे असवद’ को बोसा (चूमना) देना हज और उमरे की जरूरी रस्म मानी जाती है। हजरत मूसा और हजरत ईसा से पहले हजरत इब्राहीम के जमाने में यह पत्थर आसमान से उतरा। इसी ने हजरत इब्राहीम को रास्ता दिखाया। जहाँ पर गिरा वहीं पर मक्के की बुनियाद रखी गई। यह काला पत्थर अकीक (पुखराज की तरह) की नस्ल का बताया जाता है।
मुसलमानों के सारे फिरकों में अकीक पहनना इसीलिए सवाब माना जाता है। अकीक को मुसलमानों में पवित्र और मजहबी नगीना इसलिए भी माना जाता है पैगंबर मोहम्मद साहब भी अकीक की अँगूठी पहनते थे। यमन का अकीक सबसे महँगा और पवित्र माना जाता है। अकीक एकमात्र रत्न है जो धूप या अन्य किरणों को जज्ब कर जिस्म के अंदर पहुँचाता है। इसे पहनने से दिमाग को ताकत मिलती है और नजर को भी बढ़ाता है।
रहस्यमयी नगीने नीलम को उर्दू में भी नीलम ही कहा जाता है। मुसलमानों में यह शनि का रत्न न होकर जिस्म और आँखों को ताकतपेट के सिस्टम को ठीक कर तबीयत को नर्म करने वाला नगीना है। इसको पहनने से अच्छी आदतें पैदा होती हैं। कमजोर आदमी भी अपने अंदर ताकत महसूस करता है। इसको पहनने वाले पर जादू का असर नहीं होता। प्लेटो ने भी नीलम की तारीफ की है।
हीरे को उर्दू में भी हीरा ही कहते हैं। मुसलमानों में हीरा भी उतना ही लोकप्रिय है जितना हिंदुओं या ईसाइयों में। यह अकेला रत्न है जिसकी कुछ हिंदू अभी भी पूजा करते हैं। पुखराज को उर्दू में भी पुखराज ही कहते हैं। असली पुखराज एकदम पारदर्शी होता है। यह जिस्म में गर्मी और ताकत को बढ़ाता है। इसको पहनने से कोढ़ तक ठीक हो जाता है। खून की खराबी में भी फायदा करता है। जहर को मारता है और बवासीर में भी लाभकारी है। इच्छाशक्ति को तेज करता है और व्यापार की उलझनें दूर करता है। दया भाव पैदा करने के साथ ही परोपकारी और स्वाभिमानी भी बनाता है। हिंदुओं में इसे दाहिने हाथ की ऊँगली में पहना जाता है जबकि मुसलमानों में बाएँ हाथ में।
मुजफ्फरनगर में विष्णुलोक के पंडित विष्णु दत्त शर्मा कहते हैं कि पुखराज चूँकि बहुत महँगा होता है इसलिए भी कुछ लोग अकीक पहनते हैं लेकिन वह इस बात से इनकार करते हैं कि मुसलमानों में नगीनों का इस्तेमाल कम होता है। गोमेद को उर्दू में जरकंद कहते हैं। मुसलमानों में मान्यता है कि इसको पहनने से सामाजिक प्रतिष्ठा में इजाफा होता है और तरक्की भी होती है।
यह पौरुष शक्ति भी बढ़ाता है और गहरी नींद सुलाता है। लकवाग्रस्त व्यक्ति को फायदा पहुँचाता है। लहसुनिया को इंग्लिश में कैट्स आई और उर्दू में यशब कहते हैं। यहूदी इस नगीने का इस्तेमाल सबसे ज्यादा करते हैं। इस्राइल में यह बहुत लोकप्रिय है। पुराने जमाने में इसे गर्भ निरोधक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। कहा जाता है कि दूध में कुछ देर डालकर वह दूध पिलाने से औरत को गर्भ नहीं ठहरता। इस पर तेजाब का असर नहीं होता।
मोती को उर्दू में मरवारीद कहते हैं। इसका इस्तेमाल जितना पहनने में होता है उतना ही दवा बनाने में। यूनानी दवाओं में खमीरा मरवारीद काफी मशहूर है। इसको पहनने से ईमानदारी पैदा होती है। दिमाग ठंडा रखता है। खसरा और चेचक में बहुत लाभदायक माना जाता है। आँखों की रोशनी बढ़ाने में भी सहायक है। पन्ने को उर्दू में जमुर्रद कहते हैं और तमाम हरे पत्थरों में इसे सबसे बेहतरीन बताया गया है। तोहफा-ए-आलमे शाही’ किताब में लिखा है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने किसी से फरमाया कि जमुर्रद की अँगूठी से तमाम मुश्किलात आसान हो जाती हैं।
हजरत अली कहते थे कि जमुर्रद किसी नागहानी (संकट) का संकेत भी देता है। लेकिन देवबंद फिरके से ताल्लुक रखने वाले मुसलमान इस तरह की बातों के सख्त खिलाफ हैं। उनका कहना है कि एक पत्थर की क्या बिसात कि वह किसी का फायदा या नुकसान करेगा। जो कुछ करेगा अल्लाह करेगा। सीतापुर की एक मस्जिद के इमाम मौलाना नईम अंसारी इस तरह की बातों को शिर्क बताते हैं। कहते हैं कि जरूरी नहीं कि किताबों की हर बात सही ही हो। कौन सी किताब सही है या गलत यह भी देखने की जरूरत है। पन्ने को लेकर चाहें जितने भ्रम हों लेकिन इसकी माँग हर जगह बराबर है।
मुस्लिम औरतें इसे खूब पहनती हैं। खासतौर पर इसका लॉकेट। मिलने-जुलने की प्रवृत्ति पैदा करता है। दिल की बीमारी के अलावा मेदे में ठंडक पैदा कर पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है। पुराने जमाने में महारानियों की रान में बाँधा जाता था जिससे बच्चे की पैदाइश आसान हो जाती थी। किसी भी मुसीबत आने से पहले ही बुरी तरह से चिटक जाता है।
मूँगे को उर्दू में मरजान कहते हैं। कुरान शरीफ में इसके गुणों की चर्चा सूरे रहमान में है। सारे रत्न पहाड़ों की खदानों से निकलते हैं लेकिन मूँगा समुद्र की तलहटी के पत्थरों से चिपटी हुई एक प्रकार की वनस्पति है जो पत्थर के आस-पास शहद के छत्ते की शक्ल की पैदा होती है। माना जाता है कि इसको पहनने से लकवा-फालिज नहीं होता।
शरीर में कंपन की बीमारी नहीं होने देता। लिवर और पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है। दिल की धड़कन को काबू में रखने के अलावा गठिया में भी फायदा पहुँचाता है। इसको धारण करने वाले को आर्थिक तंगी से भी नहीं जूझना पड़ता। हकीम जालीनूस ने लिखा है कि कट जाने पर शरीर से खून न रुक रहा हो तो मूँगे का पाउडर लगाने से तत्काल रुक जाता है।
माणिक को अंग्रेजी में रूबी और उर्दू में याकूत कहते हैं। मशहूर इस्लामी स्कॉलर सैयद इब्राहीम सैफी ने लिखा है कि जब हजरत आदम को जन्नत से निकाला गया तो सबसे पहले उनका पैर श्रीलंका के सेरेनद्वीप पर पड़ा। उनके कदम मुबारक के छूने से याकूत पैदा हुआ। माणिक के प्याले में शराब डालकर पीने से उसकी तेजी और नशा लगभग खत्म हो जाता है।
कुछ मुस्लिम शहंशाहों के बारे में कहा जाता है कि वह याकूत के प्याले में ही शराब पीते थे क्योंकि इस्लाम में शराब नहीं नशे को हराम करार दिया गया है। राजा और शहंशाह इसी के बर्तनों में खाना भी खाते थे क्योंकि माणिक के बर्तन में जहर का असर नहीं होता।
कबूतर की आँख की पुतली में जो सुर्ख रंग होता है उस रंग का माणिक सबसे बेहतरीन माना जाता है। शादियों में इसकी अँगूठी बेहतरीन तोहफा माना जाता है। इसे धारण करने वाला किसी से भी ताल्लुकात बनाने में निपुण हो जाता है। दिमागी फिक्र और परेशानी भी दूर करता है। जिस्म में फुर्ती रहती है। मिर्गीगठिया और प्लेग में फायदा पहुँचाता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह प्यास की शिद्दत को कम करता है।
मूँगा-मोती अल्लाह का वरदान :
कुरान शरीफ में मूँगा और मोती को अल्लाह की खास नेमतों (वरदान) में शुमार बताया गया है। इसे जन्नत की भी रहमत (आशीर्वाद) बताया गया है। कुरान की सूरे रहमान में आयत नंबर 22 में अल्लाह ने मरजान यानी मूँगे का जिक्र अपनी खास नेमतों में किया है। याकूत यानी माणिक की खूबसूरती और गुणों के बारे में भी सूरे रहमान की आयत नंबर 58 में जिक्र है।
यहूदी लोगों का प्रिय रत्न लहसुनिया और यशब हैं। लहसुनिया को अंग्रेजी में कैट्स आई और यशब को जेड कहते हैं।यह इस्राइल के लोकप्रिय रत्न हैं। यशब का जिक्र बाइबिल में भी आया है। माना जाता है कि यशब पहनने वाले पर दुश्मन का जोर नहीं चलता। जैसपर भी यहूदियों में खूब प्रचलित है। यह जेड की नस्ल का ही मुलायम रत्न है।
यहूदी रब्बी इन्हें इस्तेमाल करते आए हैं। उनके सीने पर जेड और जैसपर की प्लेटें लगी रहती थीं जिन पर उनके धर्म ग्रंथ के उद्धरण दर्ज होते थे। शिया मुसलमानों में भी जेड और जैसपर गले में पहनने का चलन है। शिया इस पर नादे अली और पंजतन पाक नक्श कराकर पहनते हैं।
संगे सुलेमानी अंग्रेजी में अगेट के नाम से मशहूर है। मुसलमानोंयहूदियों और ईसाइयों में इस पत्थर के धार्मिक महत्व को स्वीकार किया गया है।

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