धार्मिक साहित्य की ध्यान देने योग्य बातें:-सभी धर्म-मतों के मानने वालों के विश्वास और उनके आचार विचार की जानकारी सबके लिए एक ही मंच पर उपलब्ध कराना इस मंच का मक़सद है ताकि सभी लोग आपस में एक दूसरे के बारे में जान सकें। जब लोग एक दूसरे के बारे में जानेंगे तो एक दूसरे की भावनाओं को समझने में भी आसानी होगी और उनके साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार भी किया जा सकेगा। इसी के साथ उन बातों से भी बचा जा सकेगा, जिनके कारण दूसरों की भावनाएं आहत होती हैं और समाज में नफ़रतें फैलती हैं। नफ़रत को मिटाकर मुहब्बत के फूल इस गुलिस्तां में खिलाने के लिए ही यह मंच बनाया गया है। यहां हरेक आदमी अपने धार्मिक-दार्शनिक मत को व्यक्त कर सकता है और पूछने वाला भी प्रश्न पूछ सकता है लेकिन यह सारा कहना-सुनना सभ्यता के दायरे में ही होना चाहिए। इस मंच का मक़सद शास्त्रार्थ और बहस करना नहीं है। इसलिए यहां जीत हार का भी कोई सवाल नहीं है। किसी भी सवाल का जवाब देने के लिए पोस्ट लेखक बाध्य नहीं है। यह साहित्यकारों की एक सम्मानित सभा है, जिसमें वे अपने अनुभव साझा कर रहे हैं, जिनसे सभी का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। बहरहाल सबसे प्रेम करना हम सबके लिए ज़रूर लाज़िमी है। इंसानियत के सभी उत्कृष्ट गुणों को जगाने और बढ़ाने के लिए ही इस धार्मिक साहित्य का सृजन किया जा रहा है। यहां केवल वही साहित्य संकलित किया जाएगा जो सीधे या परोक्ष, किसी भी रूप में इंसान को एक अच्छा इंसान बनाकर समाज के लिए उपयोगी बना सके। जो इस शर्त को पूरा न करता हो, उस साहित्य के लिए यह मंच नहीं है।

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

Know that among your duties, prayer is foremost

To Muslims, prayer is the second pillar in Islam, after the Shahadah, which encompasses the foundation of Islam. It was made obligatory for all Muslims, whether they be rich or poor, strong or weak, black or white, male or female.Prayer is the only ascension for the true believer, it distinguishes a believer from a non-believer and allows the believer to enrich their spirituality and cultivate the soul’s right to love and worship the creator ALLAH who is the only one worthy of worship.
The importance of prayer is conveyed constantly in the Quran and is stressed by the prophet Muhammad (s.a.w): “Know that among your duties, prayer is foremost”.

 


रविवार, 2 अक्तूबर 2011

ऐसा दुर्गा मंदिर जहां चढ़ता है गांजा

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ऐसा दुर्गा मंदिर जहां चढ़ता है गांजा
खगड़िया, एजेंसी 
विविधता से भरे भारत में देवी-देवताओं के मंदिरों में अलग-अलग ढंग से पूजा अर्चना के उदाहरण मिलते हैं। इसी क्रम में बिहार के खगड़िया का मां दुर्गा का मंदिर भी शुमार है, जहां श्रद्धालु देवी मां को प्रसन्न करने के लिए गांजा और दूध चढ़ाते हैं।

शनिवार, 20 अगस्त 2011

इस्लाम सम्पूर्ण मानव-जाति की संयुक्त निधि है

इस्लाम का अध्यन क्यों करें ?
इस्लाम हमारी या किसी की निजी सम्पत्ति नही है। यह सम्पूर्ण मानव-जाति की संयुक्त निधि हैं। यह मानव-जाति के कल्याण के लिए, हमारे बनाने वाले मालिक तथा पालनहार के बताए हुए वे नियम हैं, जिन्हे अपनाकर इन्सान लोक परलोक दोनों जगह सफलता एवं मुक्ति प्राप्त कर सकता हैं। इसलिए इन्हे अपनाने और स्वीकृत करने में हमारी अपनी भलाई हैं।

हम देख सकते हैं कि ये सूर्य, चन्द्रमा और सितारे, ये आग, पानी और हवा, ये फल-फूल और वनस्पतियों, ये लोहा, ताॅबा, सोना, आदि और इस धरती और आकाश् की एक-एक चीज एक अटल और बेलोच क़ानून में जकड़ी हुई हैं। जिससे
ख़िलाफ वह बाल बराबर भी हिल नही सकती । संसार की सारी चीजं कुछ चीजे निश्चित उसूलो और नियमों की पाबन्द हैं, जिनके अनुसार काम करके ही सभी व्यक्ति,समाज और समुदाय उनसे बराबर सेवा का काम ले सकते हैं। वैज्ञानिक और दूसरे सभी कलाकार इन नियमों तथा कानूनों को बनाते या पैदा नही करते, बल्कि अवलोकनों और तजुर्बा के द्वारा केवल मालूम करते हैं कि अमुक विशय में प्राकृतिक क़ानून यह और यह हैं। चूॅकि हर चीज से संबन्धित इन क़ानूनों को स्रश्टा ने उसकी प्रकृति में इस प्रकार रख दिया हैं कि वे किसी अवस्था में भी उससे अलग नही हो सकते । इस कारण इनको प्राकृतिक क़ानून के नाम से पूरा पुकारा जाता हैं।

फिर इस बात से भी इन्कार नही किया जा सकता कि इन सब क़ानूनों और नियमों के निर्धारण और क्रम-निर्माण या आपसी संबंध में किसी साधारण व्यक्ति को तो क्या सम्पूर्ण मानव-जाति को भी अपनी सम्पूर्ण सामग्री सहित कोई दख़ल नही और ये सम्पूर्ण प्राकुतिक नियमो सब पर समान रूप से लागू और अटल हैं।

जब सभी इन्सान, गोरे हो या काले, गेहू रंग हों या पीले और पूर्वी हों या पश्चिमी, सब एक ही जाति से संबंध रखते हैं, एक ही स्वभाव के मालिक हैं तो उनके लिए पैदा करनेवाले की ओर से देष, काल के कारण विभिन्न धर्म कैसे आ सकते थे। हज़रत आदम (अलैहि0) से लेकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0)तक तमाम संदेष्टओं का एक ही धर्म लेकर आना बुद्वि की माग हैं और यही कु़रआन से प्रमाणित हैं और ऐतिहासिक सत्य भी यही हैं।

अतएव ईष्वर ने यह वास्विकता हम इन्सानों पर स्पश्ट करने के लिए अपने अन्तिम संदेष्ट से पवित्र कु़रआन में कहा कि तुम्हे कोई नया धर्म देकर नही भेजा गया हैं,बल्कि यह वही धर्म हैं जिसे पिछले संदेष्ट लेकर आते रहे हैं।

यह बात भी सर्वमान्य वास्तविकता हैं कि इस्लाम हमारी या किसी की निजी सम्पत्ति नही है। यह सम्पूर्ण मानव-जाति की संयुक्त निधि हैं। यह मानव-जाति के कल्याण के लिए, हमारे बनाने वाले मालिक तथा पालनहार के बताए हुए वे नियम हैं, जिन्हे अपनाकर इन्सान लोक परलोक दोनों जगह सफलता एवं मुक्ति प्राप्त कर सकता हैं। इसलिए इन्हे अपनाने और स्वीकृत करने में हमारी अपनी भलाई हैं।

हम देख सकते हैं कि ये सूर्य, चन्द्रमा और सितारे, ये आग, पानी और हवा, ये फल-फूल और वनस्पतियों, ये लोहा, ताबा, सोना, आदि और इस धरती और आकाश् की एक-एक चीज एक अटल और बेलोच क़ानून में जकड़ी हुई हैं। जिससे
ख़िलाफ वह बाल बराबर भी हिल नही सकती । संसार की सारी चीजे कुछ चीजे निश्चिंत उसूलो और नियमों की पाबन्द हैं, जिनके अनुसार काम करके ही सभी व्यक्ति,समाज और समुदाय उनसे बराबर सेवा का काम ले सकते हैं। वैज्ञानिक और दूसरे सभी कलाकार इन नियमों तथा कानूनों को बनाते या पैदा नही करते, बल्कि अवलोकनों और तजुर्बा के द्वारा केवल मालूम करते हैं कि अमुक विशय में प्राकृतिक क़ानून यह और यह हैं। चूकि हर चीज से संबन्धित इन क़ानूनों को स्रष्टा ने उसकी प्रकृति में इस प्रकार रख दिया हैं कि वे किसी अवस्था में भी उससे अलग नही हो सकते । इस कारण इनको प्राकृतिक क़ानून के नाम से पूरा पुकारा जाता हैं।

फिर इस बात से भी इन्कार नही किया जा सकता कि इन सब क़ानूनों और नियमों के निर्धारण और क्रम-निर्माण या आपसी संबंध में किसी साधारण व्यक्ति को तो क्या सम्पूर्ण मानव-जाति को भी अपनी सम्पूर्ण सामग्री सहित कोई दख़ल नही और ये सम्पूर्ण प्राकुतिक नियमो सब पर समान रूप से लागू और अटल हैं।

जब सभी इन्सान, गोरे हो या काले, गेहूए रंग हों या पीले और पूर्वी हों या पश्चिमी सब एक ही जाति से संबंध रखते हैं, एक ही स्वभाव के मालिक हैं तो उनके लिए पैदा करनेवाले की ओर से देष, काल के कारण विभिन्न धर्म कैसे आ सकते थे। हज़रत आदम (अलैहि0) से लेकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0)तक तमाम सन्देश्टाओं का एक ही धर्म लेकर आना बुद्वि की माॅग हैं और यही कु़रआन से प्रमाणित हैं और ऐतिहासिक सत्य भी यही हैं।

अतएव ईष्वर ने यह वास्विकता हम इन्सानों पर स्पश्ट करने के लिए अपने अन्तिम संदेश्टता से पवित्र कु़रआन में कहा कि तुम्हे कोई नया धर्म देकर नही भेजा गया हैं, बल्कि यह वही धर्म हैं जिसे पिछले सन्देश्टा लेकर आते रहे हैं।

यह बात भी सर्वमान्य वास्तविकता हैं कि ईश्वरी ग्रन्थों में से केवल पवित्र कु़रआन और ईश्वर के संदेष्टओं में से केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ही एक ऐसी हस्ती हैं,जिनका चरित्र और मार्ग-दर्शन इस समय संसार में ज्यों माजूद हैं और किसी भी परिवर्तन से सुरक्षित हैं और इतिहास गवाह हैं कि जहा पिछले संदेष्टओं के आचरण और उनकी शिक्षाओं का इस समय ठीक-ठीक मौजूद होना तो दूर रहा,उनके दो चार सौ वर्ष बाद भी उनके ठीक-ठीक दुनिया में मौजूद होने का प्रमाण नही मिलता । ऐसा किसी संयोग से नही हुआ, बल्कि इस पवित्र-ज्योति को सत्य के खोजियों के लिए क़ियामत (प्रलव) तक सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी ईश्वर ने खुद ले ली हैं, जैसा कि कहा, ’’इस जिक्र (पवित्र कुरआन) को हमने ही उतारा हैं और हम स्वंय उसके रक्षक हैं।‘‘ कुरआन, 15ः9

अतः सत्य प्रेमियों को चाहिए कि पवित्र कु़रआन और मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षाओं का अवश्य अध्ययन करें, ताकि सही रहनुमाई मिल सके। आप इस पवित्र कुरआन और अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद (सल्ल0)पवित्र जीवनी के अध्ययन के बाद पाएगे कि इनमें वे सारी शिक्षाए मूलरूप से मौजूद हैं, जो विभिन्न समुदायो और विभिन्न देषो में समय-समय पर आरम्भ से ईश्वर की ओर से उतारी जाती रही हैं। मुहम्मद(सल्ल0)
से पूर्व आए हुए सम्पूर्ण पैगम्बर (संदेष्टा) ईष्वर के सच्चे और अतिप्रिय बन्दे थें। मुसलमान होने के लिए जरूरी क़रार दिया गया हैं कि मुहम्मद (सल्ल0) के साथ-साथ उन सबको सच्चा स्वीकार किया जाए। उन पर ईमान लाया जाए। उनमें से किसी एक का भी इन्कार मनुष्य को सत्य धर्म (दीने-इस्लामी) से निकाल बाहर कर देता हैं। कुरआन में हैं-

’’ऐ मुहम्मद ! कहो हम ईश्वर को मानते हैं और उस शिक्षा को मानते हैं जो हम पर उतारी गई हैं। इसके साथ ही हम उन शिक्षाओं को भी मानते हैं, जो इब्राहीम (अलैहि0), इस्माईल (अलैहि0), इसहाक़ (अलैहि0), याकूब (अलैहि0)और उनकी सन्तान पर उतारी गई थीं और हिदायतों पर भी ईमान रखते हैं, जो मूसा (अलैहि0), ईसा (अलैहि0) और दूसरे पैगम्बरों को उनके पालनहार की ओर से दी गई। हम उनके बीच अन्तर नही करते और हम अल्लाह के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।‘‘

भाइयों! आप ’सत्य-धर्म‘(इस्लाम) और उसके लानेवाले के जीवन-चरित्र से परिचित होने का कष्ट तो करें। किसी बात या दृष्टिकोण को स्वीकार या स्वीकार करने का प्रशन तो बाद में पैदा होता हैं। ग्रन्थों में से केवल पवित्र कु़रआन और ईश्वर के संदेष्टाओं में से केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ही एक ऐसी हस्ती हैं, जिनका चरित्र और मार्ग-दर्शन इस समय संसार में ज्यों माजूद हैं और किसी भी परिवर्तन से सुरक्षित हैं और इतिहास गवाह हैं कि जहा पिछले संदेष्टाओं के आचरण और उनकी शिक्षाओं का इस समय ठीक-ठीक मौजूद होना तो दूर रहा, उनके दो चार सौ वर्ष बाद भी उनके ठीक-ठीक दुनिया में मौजूद होने का प्रमाण नही मिलता । ऐसा किसी संयोग से नही हुआ, बल्कि इस पवित्र-ज्योति को सत्य के खोजियों के लिए क़ियामत (प्रलव) तक सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी ईश्वर ने खुद ले ली हैं, जैसा कि कहा, ’’इस जिक्र (पवित्र कुरआन) को हमने ही उतारा हैं और हम स्वंय उसके रक्षक हैं।‘‘ कुरआन, 15ः9

अतः सत्य प्रेमियों को चाहिए कि पवित्र कु़रआन और मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षाओ का अवश्य् अध्ययन करें, ताकि सही रहनुमाई मिल सके। आप इस पवित्र कुरआन और अन्तिम संदेष्ता मुहम्मद (सल्ल0)पवित्र जीवनी के अध्ययन के बाद पाएगे कि इनमें वे सारी शिक्षाए मूलरूप से मौजूद हैं, जो विभिन्न समुदायो और विभिन्न देशॊ में समय-समय पर आरम्भ से ईश्वर की ओर से उतारी जाती रही हैं। मुहम्मद(सल्ल0)
से पूर्व आए हुए सम्पूर्ण पैगम्बर (संदेश्टा) ईष्वर के सच्चे और अतिप्रिय बन्दे थें। मुसलमान होने के लिए जरूरी क़रार दिया गया हैं कि मुहम्मद (सल्ल0) के साथ-साथ उन सबको सच्चा स्वीकार किया जाए। उन पर ईमान लाया जाए। उनमें से किसी एक का भी इन्कार मनुश्य को सत्य धर्म (दीने-इस्लामी) से निकाल बाहर कर देता हैं। कुरआॅन में हैं-

’’ऐ मुहम्मद ! कहो हम ईश्वर को मानते हैं और उस शिक्षा को मानते हैं जो हम पर उतारी गई हैं। इसके साथ ही हम उन शिक्षाओं को भी मानते हैं, जो इब्राहीम (अलैहि0), इस्माईल (अलैहि0), इसहाक़ (अलैहि0), याकूब (अलैहि0)और उनकी सन्तान पर उतारी गई थीं और हिदायतों पर भी ईमान रखते हैं, जो मूसा (अलैहि0), ईसा (अलैहि0) और दूसरे पैगम्बरों को उनके पालनहार की ओर से दी गई। हम उनके बीच अन्तर नही करते और हम अल्लाह के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।‘‘

भाइयों ! आप ’सत्य-धर्म‘ (इस्लाम) और उसके लानेवाले के जीवन-चरित्र से परिचित होने का कष्ट तो करें। किसी बात या दृष्टिकोण को स्वीकार या स्वीकार करने का प्रश्न तो बाद में पैदा होता हैं। 
स्रोत : http://www.c9soft.com/islamsabkeliye/article.php?event=detail&id=56

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु, एक आदर्श

विश्व शांति और मानव एकता के लिए हज़रत अली की ज़िंदगी सचमुच एक आदर्श है


तेरह रजब के मौक़े पर आओ ये अहद लें
मसलक हो ख्वाह  कोई भी मिलकर रहेंगे हम
अल्लाह और क़ुरआनो नबी हैं हमारे एक 
एक दूसरे पे कुफ़्र के फ़तवे न देंगे हम

    -असद रज़ा
तेरह रजब-अरबी माह रजब की तेरह तारीख़
अहद-संकल्प, ख्वाह-चाहे
कुफ़्र-अधर्म, नास्तिक्य, फ़तवा-धार्मिक निर्णय

हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु तेरह रजब के दिन पैदा हुए थे। जब भी सही और ग़लत के बीच फ़ैसले की नौबत आई तो उन्होंने हमेशा सत्य और न्याय को ही चुना। बचपन से ही उनका यह मिज़ाज था। इसी अभ्यास के कारण उनका चरित्र ऐसा बन गया था कि उनसे जीवन में कभी फ़ैसले की कोई ग़लती नहीं हुई और यही वजह है कि उनकी ज़िन्दगी में भी हमें कोई ग़लती नज़र नहीं आती। उनकी इस बात की गवाही उनसे युद्ध करने वालों ने भी दी है। अपने ख़ून के प्यासों पर भी उन्होंने कभी कुफ़्र का फ़तवा लागू नहीं किया। उनकी ज़िंदगी लोगों को शांति, एकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाने में ही गुज़र गई और एक रोज़ जब वह मालिक का नाम ले रहे थे तो उनके सिर पर एक दुश्मन ने तलवार मारी और कुछ दिन बाद हज़रत अली रज़ि. शहीद हो गए। विश्व शांति और मानव एकता के लिए उनकी ज़िंदगी सचमुच एक आदर्श है।
इस विषय में ज़्यादा जानने के लिए आप देख सकते हैं :

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम जीवन परिचय व चारित्रिक विशेषताऐं