विश्व शांति और मानव एकता के लिए हज़रत अली की ज़िंदगी सचमुच एक आदर्श है
तेरह रजब के मौक़े पर आओ ये अहद लें
मसलक हो ख्वाह कोई भी मिलकर रहेंगे हम
अल्लाह और क़ुरआनो नबी हैं हमारे एक
एक दूसरे पे कुफ़्र के फ़तवे न देंगे हम
-असद रज़ा
तेरह रजब-अरबी माह रजब की तेरह तारीख़
अहद-संकल्प, ख्वाह-चाहे
कुफ़्र-अधर्म, नास्तिक्य, फ़तवा-धार्मिक निर्णय
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु तेरह रजब के दिन पैदा हुए थे। जब भी सही और ग़लत के बीच फ़ैसले की नौबत आई तो उन्होंने हमेशा सत्य और न्याय को ही चुना। बचपन से ही उनका यह मिज़ाज था। इसी अभ्यास के कारण उनका चरित्र ऐसा बन गया था कि उनसे जीवन में कभी फ़ैसले की कोई ग़लती नहीं हुई और यही वजह है कि उनकी ज़िन्दगी में भी हमें कोई ग़लती नज़र नहीं आती। उनकी इस बात की गवाही उनसे युद्ध करने वालों ने भी दी है। अपने ख़ून के प्यासों पर भी उन्होंने कभी कुफ़्र का फ़तवा लागू नहीं किया। उनकी ज़िंदगी लोगों को शांति, एकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाने में ही गुज़र गई और एक रोज़ जब वह मालिक का नाम ले रहे थे तो उनके सिर पर एक दुश्मन ने तलवार मारी और कुछ दिन बाद हज़रत अली रज़ि. शहीद हो गए। विश्व शांति और मानव एकता के लिए उनकी ज़िंदगी सचमुच एक आदर्श है।
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