इस्लाम का अध्यन क्यों करें ?
इस्लाम हमारी या किसी की निजी सम्पत्ति नही है। यह सम्पूर्ण मानव-जाति की संयुक्त निधि हैं। यह मानव-जाति के कल्याण के लिए, हमारे बनाने वाले मालिक तथा पालनहार के बताए हुए वे नियम हैं, जिन्हे अपनाकर इन्सान लोक परलोक दोनों जगह सफलता एवं मुक्ति प्राप्त कर सकता हैं। इसलिए इन्हे अपनाने और स्वीकृत करने में हमारी अपनी भलाई हैं।
हम देख सकते हैं कि ये सूर्य, चन्द्रमा और सितारे, ये आग, पानी और हवा, ये फल-फूल और वनस्पतियों, ये लोहा, ताॅबा, सोना, आदि और इस धरती और आकाश् की एक-एक चीज एक अटल और बेलोच क़ानून में जकड़ी हुई हैं। जिससे
ख़िलाफ वह बाल बराबर भी हिल नही सकती । संसार की सारी चीजं कुछ चीजे निश्चित उसूलो और नियमों की पाबन्द हैं, जिनके अनुसार काम करके ही सभी व्यक्ति,समाज और समुदाय उनसे बराबर सेवा का काम ले सकते हैं। वैज्ञानिक और दूसरे सभी कलाकार इन नियमों तथा कानूनों को बनाते या पैदा नही करते, बल्कि अवलोकनों और तजुर्बा के द्वारा केवल मालूम करते हैं कि अमुक विशय में प्राकृतिक क़ानून यह और यह हैं। चूॅकि हर चीज से संबन्धित इन क़ानूनों को स्रश्टा ने उसकी प्रकृति में इस प्रकार रख दिया हैं कि वे किसी अवस्था में भी उससे अलग नही हो सकते । इस कारण इनको प्राकृतिक क़ानून के नाम से पूरा पुकारा जाता हैं।
फिर इस बात से भी इन्कार नही किया जा सकता कि इन सब क़ानूनों और नियमों के निर्धारण और क्रम-निर्माण या आपसी संबंध में किसी साधारण व्यक्ति को तो क्या सम्पूर्ण मानव-जाति को भी अपनी सम्पूर्ण सामग्री सहित कोई दख़ल नही और ये सम्पूर्ण प्राकुतिक नियमो सब पर समान रूप से लागू और अटल हैं।
जब सभी इन्सान, गोरे हो या काले, गेहू रंग हों या पीले और पूर्वी हों या पश्चिमी, सब एक ही जाति से संबंध रखते हैं, एक ही स्वभाव के मालिक हैं तो उनके लिए पैदा करनेवाले की ओर से देष, काल के कारण विभिन्न धर्म कैसे आ सकते थे। हज़रत आदम (अलैहि0) से लेकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0)तक तमाम संदेष्टओं का एक ही धर्म लेकर आना बुद्वि की माग हैं और यही कु़रआन से प्रमाणित हैं और ऐतिहासिक सत्य भी यही हैं।
अतएव ईष्वर ने यह वास्विकता हम इन्सानों पर स्पश्ट करने के लिए अपने अन्तिम संदेष्ट से पवित्र कु़रआन में कहा कि तुम्हे कोई नया धर्म देकर नही भेजा गया हैं,बल्कि यह वही धर्म हैं जिसे पिछले संदेष्ट लेकर आते रहे हैं।
यह बात भी सर्वमान्य वास्तविकता हैं कि इस्लाम हमारी या किसी की निजी सम्पत्ति नही है। यह सम्पूर्ण मानव-जाति की संयुक्त निधि हैं। यह मानव-जाति के कल्याण के लिए, हमारे बनाने वाले मालिक तथा पालनहार के बताए हुए वे नियम हैं, जिन्हे अपनाकर इन्सान लोक परलोक दोनों जगह सफलता एवं मुक्ति प्राप्त कर सकता हैं। इसलिए इन्हे अपनाने और स्वीकृत करने में हमारी अपनी भलाई हैं।
हम देख सकते हैं कि ये सूर्य, चन्द्रमा और सितारे, ये आग, पानी और हवा, ये फल-फूल और वनस्पतियों, ये लोहा, ताबा, सोना, आदि और इस धरती और आकाश् की एक-एक चीज एक अटल और बेलोच क़ानून में जकड़ी हुई हैं। जिससे
ख़िलाफ वह बाल बराबर भी हिल नही सकती । संसार की सारी चीजे कुछ चीजे निश्चिंत उसूलो और नियमों की पाबन्द हैं, जिनके अनुसार काम करके ही सभी व्यक्ति,समाज और समुदाय उनसे बराबर सेवा का काम ले सकते हैं। वैज्ञानिक और दूसरे सभी कलाकार इन नियमों तथा कानूनों को बनाते या पैदा नही करते, बल्कि अवलोकनों और तजुर्बा के द्वारा केवल मालूम करते हैं कि अमुक विशय में प्राकृतिक क़ानून यह और यह हैं। चूकि हर चीज से संबन्धित इन क़ानूनों को स्रष्टा ने उसकी प्रकृति में इस प्रकार रख दिया हैं कि वे किसी अवस्था में भी उससे अलग नही हो सकते । इस कारण इनको प्राकृतिक क़ानून के नाम से पूरा पुकारा जाता हैं।
फिर इस बात से भी इन्कार नही किया जा सकता कि इन सब क़ानूनों और नियमों के निर्धारण और क्रम-निर्माण या आपसी संबंध में किसी साधारण व्यक्ति को तो क्या सम्पूर्ण मानव-जाति को भी अपनी सम्पूर्ण सामग्री सहित कोई दख़ल नही और ये सम्पूर्ण प्राकुतिक नियमो सब पर समान रूप से लागू और अटल हैं।
जब सभी इन्सान, गोरे हो या काले, गेहूए रंग हों या पीले और पूर्वी हों या पश्चिमी सब एक ही जाति से संबंध रखते हैं, एक ही स्वभाव के मालिक हैं तो उनके लिए पैदा करनेवाले की ओर से देष, काल के कारण विभिन्न धर्म कैसे आ सकते थे। हज़रत आदम (अलैहि0) से लेकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0)तक तमाम सन्देश्टाओं का एक ही धर्म लेकर आना बुद्वि की माॅग हैं और यही कु़रआन से प्रमाणित हैं और ऐतिहासिक सत्य भी यही हैं।
अतएव ईष्वर ने यह वास्विकता हम इन्सानों पर स्पश्ट करने के लिए अपने अन्तिम संदेश्टता से पवित्र कु़रआन में कहा कि तुम्हे कोई नया धर्म देकर नही भेजा गया हैं, बल्कि यह वही धर्म हैं जिसे पिछले सन्देश्टा लेकर आते रहे हैं।
यह बात भी सर्वमान्य वास्तविकता हैं कि ईश्वरी ग्रन्थों में से केवल पवित्र कु़रआन और ईश्वर के संदेष्टओं में से केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ही एक ऐसी हस्ती हैं,जिनका चरित्र और मार्ग-दर्शन इस समय संसार में ज्यों माजूद हैं और किसी भी परिवर्तन से सुरक्षित हैं और इतिहास गवाह हैं कि जहा पिछले संदेष्टओं के आचरण और उनकी शिक्षाओं का इस समय ठीक-ठीक मौजूद होना तो दूर रहा,उनके दो चार सौ वर्ष बाद भी उनके ठीक-ठीक दुनिया में मौजूद होने का प्रमाण नही मिलता । ऐसा किसी संयोग से नही हुआ, बल्कि इस पवित्र-ज्योति को सत्य के खोजियों के लिए क़ियामत (प्रलव) तक सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी ईश्वर ने खुद ले ली हैं, जैसा कि कहा, ’’इस जिक्र (पवित्र कुरआन) को हमने ही उतारा हैं और हम स्वंय उसके रक्षक हैं।‘‘ कुरआन, 15ः9
अतः सत्य प्रेमियों को चाहिए कि पवित्र कु़रआन और मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षाओं का अवश्य अध्ययन करें, ताकि सही रहनुमाई मिल सके। आप इस पवित्र कुरआन और अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद (सल्ल0)पवित्र जीवनी के अध्ययन के बाद पाएगे कि इनमें वे सारी शिक्षाए मूलरूप से मौजूद हैं, जो विभिन्न समुदायो और विभिन्न देषो में समय-समय पर आरम्भ से ईश्वर की ओर से उतारी जाती रही हैं। मुहम्मद(सल्ल0)
से पूर्व आए हुए सम्पूर्ण पैगम्बर (संदेष्टा) ईष्वर के सच्चे और अतिप्रिय बन्दे थें। मुसलमान होने के लिए जरूरी क़रार दिया गया हैं कि मुहम्मद (सल्ल0) के साथ-साथ उन सबको सच्चा स्वीकार किया जाए। उन पर ईमान लाया जाए। उनमें से किसी एक का भी इन्कार मनुष्य को सत्य धर्म (दीने-इस्लामी) से निकाल बाहर कर देता हैं। कुरआन में हैं-
’’ऐ मुहम्मद ! कहो हम ईश्वर को मानते हैं और उस शिक्षा को मानते हैं जो हम पर उतारी गई हैं। इसके साथ ही हम उन शिक्षाओं को भी मानते हैं, जो इब्राहीम (अलैहि0), इस्माईल (अलैहि0), इसहाक़ (अलैहि0), याकूब (अलैहि0)और उनकी सन्तान पर उतारी गई थीं और हिदायतों पर भी ईमान रखते हैं, जो मूसा (अलैहि0), ईसा (अलैहि0) और दूसरे पैगम्बरों को उनके पालनहार की ओर से दी गई। हम उनके बीच अन्तर नही करते और हम अल्लाह के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।‘‘
भाइयों! आप ’सत्य-धर्म‘(इस्लाम) और उसके लानेवाले के जीवन-चरित्र से परिचित होने का कष्ट तो करें। किसी बात या दृष्टिकोण को स्वीकार या स्वीकार करने का प्रशन तो बाद में पैदा होता हैं। ग्रन्थों में से केवल पवित्र कु़रआन और ईश्वर के संदेष्टाओं में से केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ही एक ऐसी हस्ती हैं, जिनका चरित्र और मार्ग-दर्शन इस समय संसार में ज्यों माजूद हैं और किसी भी परिवर्तन से सुरक्षित हैं और इतिहास गवाह हैं कि जहा पिछले संदेष्टाओं के आचरण और उनकी शिक्षाओं का इस समय ठीक-ठीक मौजूद होना तो दूर रहा, उनके दो चार सौ वर्ष बाद भी उनके ठीक-ठीक दुनिया में मौजूद होने का प्रमाण नही मिलता । ऐसा किसी संयोग से नही हुआ, बल्कि इस पवित्र-ज्योति को सत्य के खोजियों के लिए क़ियामत (प्रलव) तक सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी ईश्वर ने खुद ले ली हैं, जैसा कि कहा, ’’इस जिक्र (पवित्र कुरआन) को हमने ही उतारा हैं और हम स्वंय उसके रक्षक हैं।‘‘ कुरआन, 15ः9
अतः सत्य प्रेमियों को चाहिए कि पवित्र कु़रआन और मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षाओ का अवश्य् अध्ययन करें, ताकि सही रहनुमाई मिल सके। आप इस पवित्र कुरआन और अन्तिम संदेष्ता मुहम्मद (सल्ल0)पवित्र जीवनी के अध्ययन के बाद पाएगे कि इनमें वे सारी शिक्षाए मूलरूप से मौजूद हैं, जो विभिन्न समुदायो और विभिन्न देशॊ में समय-समय पर आरम्भ से ईश्वर की ओर से उतारी जाती रही हैं। मुहम्मद(सल्ल0)
से पूर्व आए हुए सम्पूर्ण पैगम्बर (संदेश्टा) ईष्वर के सच्चे और अतिप्रिय बन्दे थें। मुसलमान होने के लिए जरूरी क़रार दिया गया हैं कि मुहम्मद (सल्ल0) के साथ-साथ उन सबको सच्चा स्वीकार किया जाए। उन पर ईमान लाया जाए। उनमें से किसी एक का भी इन्कार मनुश्य को सत्य धर्म (दीने-इस्लामी) से निकाल बाहर कर देता हैं। कुरआॅन में हैं-
’’ऐ मुहम्मद ! कहो हम ईश्वर को मानते हैं और उस शिक्षा को मानते हैं जो हम पर उतारी गई हैं। इसके साथ ही हम उन शिक्षाओं को भी मानते हैं, जो इब्राहीम (अलैहि0), इस्माईल (अलैहि0), इसहाक़ (अलैहि0), याकूब (अलैहि0)और उनकी सन्तान पर उतारी गई थीं और हिदायतों पर भी ईमान रखते हैं, जो मूसा (अलैहि0), ईसा (अलैहि0) और दूसरे पैगम्बरों को उनके पालनहार की ओर से दी गई। हम उनके बीच अन्तर नही करते और हम अल्लाह के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।‘‘
भाइयों ! आप ’सत्य-धर्म‘ (इस्लाम) और उसके लानेवाले के जीवन-चरित्र से परिचित होने का कष्ट तो करें। किसी बात या दृष्टिकोण को स्वीकार या स्वीकार करने का प्रश्न तो बाद में पैदा होता हैं।
हम देख सकते हैं कि ये सूर्य, चन्द्रमा और सितारे, ये आग, पानी और हवा, ये फल-फूल और वनस्पतियों, ये लोहा, ताॅबा, सोना, आदि और इस धरती और आकाश् की एक-एक चीज एक अटल और बेलोच क़ानून में जकड़ी हुई हैं। जिससे
ख़िलाफ वह बाल बराबर भी हिल नही सकती । संसार की सारी चीजं कुछ चीजे निश्चित उसूलो और नियमों की पाबन्द हैं, जिनके अनुसार काम करके ही सभी व्यक्ति,समाज और समुदाय उनसे बराबर सेवा का काम ले सकते हैं। वैज्ञानिक और दूसरे सभी कलाकार इन नियमों तथा कानूनों को बनाते या पैदा नही करते, बल्कि अवलोकनों और तजुर्बा के द्वारा केवल मालूम करते हैं कि अमुक विशय में प्राकृतिक क़ानून यह और यह हैं। चूॅकि हर चीज से संबन्धित इन क़ानूनों को स्रश्टा ने उसकी प्रकृति में इस प्रकार रख दिया हैं कि वे किसी अवस्था में भी उससे अलग नही हो सकते । इस कारण इनको प्राकृतिक क़ानून के नाम से पूरा पुकारा जाता हैं।
फिर इस बात से भी इन्कार नही किया जा सकता कि इन सब क़ानूनों और नियमों के निर्धारण और क्रम-निर्माण या आपसी संबंध में किसी साधारण व्यक्ति को तो क्या सम्पूर्ण मानव-जाति को भी अपनी सम्पूर्ण सामग्री सहित कोई दख़ल नही और ये सम्पूर्ण प्राकुतिक नियमो सब पर समान रूप से लागू और अटल हैं।
जब सभी इन्सान, गोरे हो या काले, गेहू रंग हों या पीले और पूर्वी हों या पश्चिमी, सब एक ही जाति से संबंध रखते हैं, एक ही स्वभाव के मालिक हैं तो उनके लिए पैदा करनेवाले की ओर से देष, काल के कारण विभिन्न धर्म कैसे आ सकते थे। हज़रत आदम (अलैहि0) से लेकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0)तक तमाम संदेष्टओं का एक ही धर्म लेकर आना बुद्वि की माग हैं और यही कु़रआन से प्रमाणित हैं और ऐतिहासिक सत्य भी यही हैं।
अतएव ईष्वर ने यह वास्विकता हम इन्सानों पर स्पश्ट करने के लिए अपने अन्तिम संदेष्ट से पवित्र कु़रआन में कहा कि तुम्हे कोई नया धर्म देकर नही भेजा गया हैं,बल्कि यह वही धर्म हैं जिसे पिछले संदेष्ट लेकर आते रहे हैं।
यह बात भी सर्वमान्य वास्तविकता हैं कि इस्लाम हमारी या किसी की निजी सम्पत्ति नही है। यह सम्पूर्ण मानव-जाति की संयुक्त निधि हैं। यह मानव-जाति के कल्याण के लिए, हमारे बनाने वाले मालिक तथा पालनहार के बताए हुए वे नियम हैं, जिन्हे अपनाकर इन्सान लोक परलोक दोनों जगह सफलता एवं मुक्ति प्राप्त कर सकता हैं। इसलिए इन्हे अपनाने और स्वीकृत करने में हमारी अपनी भलाई हैं।
हम देख सकते हैं कि ये सूर्य, चन्द्रमा और सितारे, ये आग, पानी और हवा, ये फल-फूल और वनस्पतियों, ये लोहा, ताबा, सोना, आदि और इस धरती और आकाश् की एक-एक चीज एक अटल और बेलोच क़ानून में जकड़ी हुई हैं। जिससे
ख़िलाफ वह बाल बराबर भी हिल नही सकती । संसार की सारी चीजे कुछ चीजे निश्चिंत उसूलो और नियमों की पाबन्द हैं, जिनके अनुसार काम करके ही सभी व्यक्ति,समाज और समुदाय उनसे बराबर सेवा का काम ले सकते हैं। वैज्ञानिक और दूसरे सभी कलाकार इन नियमों तथा कानूनों को बनाते या पैदा नही करते, बल्कि अवलोकनों और तजुर्बा के द्वारा केवल मालूम करते हैं कि अमुक विशय में प्राकृतिक क़ानून यह और यह हैं। चूकि हर चीज से संबन्धित इन क़ानूनों को स्रष्टा ने उसकी प्रकृति में इस प्रकार रख दिया हैं कि वे किसी अवस्था में भी उससे अलग नही हो सकते । इस कारण इनको प्राकृतिक क़ानून के नाम से पूरा पुकारा जाता हैं।
फिर इस बात से भी इन्कार नही किया जा सकता कि इन सब क़ानूनों और नियमों के निर्धारण और क्रम-निर्माण या आपसी संबंध में किसी साधारण व्यक्ति को तो क्या सम्पूर्ण मानव-जाति को भी अपनी सम्पूर्ण सामग्री सहित कोई दख़ल नही और ये सम्पूर्ण प्राकुतिक नियमो सब पर समान रूप से लागू और अटल हैं।
जब सभी इन्सान, गोरे हो या काले, गेहूए रंग हों या पीले और पूर्वी हों या पश्चिमी सब एक ही जाति से संबंध रखते हैं, एक ही स्वभाव के मालिक हैं तो उनके लिए पैदा करनेवाले की ओर से देष, काल के कारण विभिन्न धर्म कैसे आ सकते थे। हज़रत आदम (अलैहि0) से लेकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0)तक तमाम सन्देश्टाओं का एक ही धर्म लेकर आना बुद्वि की माॅग हैं और यही कु़रआन से प्रमाणित हैं और ऐतिहासिक सत्य भी यही हैं।
अतएव ईष्वर ने यह वास्विकता हम इन्सानों पर स्पश्ट करने के लिए अपने अन्तिम संदेश्टता से पवित्र कु़रआन में कहा कि तुम्हे कोई नया धर्म देकर नही भेजा गया हैं, बल्कि यह वही धर्म हैं जिसे पिछले सन्देश्टा लेकर आते रहे हैं।
यह बात भी सर्वमान्य वास्तविकता हैं कि ईश्वरी ग्रन्थों में से केवल पवित्र कु़रआन और ईश्वर के संदेष्टओं में से केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ही एक ऐसी हस्ती हैं,जिनका चरित्र और मार्ग-दर्शन इस समय संसार में ज्यों माजूद हैं और किसी भी परिवर्तन से सुरक्षित हैं और इतिहास गवाह हैं कि जहा पिछले संदेष्टओं के आचरण और उनकी शिक्षाओं का इस समय ठीक-ठीक मौजूद होना तो दूर रहा,उनके दो चार सौ वर्ष बाद भी उनके ठीक-ठीक दुनिया में मौजूद होने का प्रमाण नही मिलता । ऐसा किसी संयोग से नही हुआ, बल्कि इस पवित्र-ज्योति को सत्य के खोजियों के लिए क़ियामत (प्रलव) तक सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी ईश्वर ने खुद ले ली हैं, जैसा कि कहा, ’’इस जिक्र (पवित्र कुरआन) को हमने ही उतारा हैं और हम स्वंय उसके रक्षक हैं।‘‘ कुरआन, 15ः9
अतः सत्य प्रेमियों को चाहिए कि पवित्र कु़रआन और मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षाओं का अवश्य अध्ययन करें, ताकि सही रहनुमाई मिल सके। आप इस पवित्र कुरआन और अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद (सल्ल0)पवित्र जीवनी के अध्ययन के बाद पाएगे कि इनमें वे सारी शिक्षाए मूलरूप से मौजूद हैं, जो विभिन्न समुदायो और विभिन्न देषो में समय-समय पर आरम्भ से ईश्वर की ओर से उतारी जाती रही हैं। मुहम्मद(सल्ल0)
से पूर्व आए हुए सम्पूर्ण पैगम्बर (संदेष्टा) ईष्वर के सच्चे और अतिप्रिय बन्दे थें। मुसलमान होने के लिए जरूरी क़रार दिया गया हैं कि मुहम्मद (सल्ल0) के साथ-साथ उन सबको सच्चा स्वीकार किया जाए। उन पर ईमान लाया जाए। उनमें से किसी एक का भी इन्कार मनुष्य को सत्य धर्म (दीने-इस्लामी) से निकाल बाहर कर देता हैं। कुरआन में हैं-
’’ऐ मुहम्मद ! कहो हम ईश्वर को मानते हैं और उस शिक्षा को मानते हैं जो हम पर उतारी गई हैं। इसके साथ ही हम उन शिक्षाओं को भी मानते हैं, जो इब्राहीम (अलैहि0), इस्माईल (अलैहि0), इसहाक़ (अलैहि0), याकूब (अलैहि0)और उनकी सन्तान पर उतारी गई थीं और हिदायतों पर भी ईमान रखते हैं, जो मूसा (अलैहि0), ईसा (अलैहि0) और दूसरे पैगम्बरों को उनके पालनहार की ओर से दी गई। हम उनके बीच अन्तर नही करते और हम अल्लाह के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।‘‘
भाइयों! आप ’सत्य-धर्म‘(इस्लाम) और उसके लानेवाले के जीवन-चरित्र से परिचित होने का कष्ट तो करें। किसी बात या दृष्टिकोण को स्वीकार या स्वीकार करने का प्रशन तो बाद में पैदा होता हैं। ग्रन्थों में से केवल पवित्र कु़रआन और ईश्वर के संदेष्टाओं में से केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ही एक ऐसी हस्ती हैं, जिनका चरित्र और मार्ग-दर्शन इस समय संसार में ज्यों माजूद हैं और किसी भी परिवर्तन से सुरक्षित हैं और इतिहास गवाह हैं कि जहा पिछले संदेष्टाओं के आचरण और उनकी शिक्षाओं का इस समय ठीक-ठीक मौजूद होना तो दूर रहा, उनके दो चार सौ वर्ष बाद भी उनके ठीक-ठीक दुनिया में मौजूद होने का प्रमाण नही मिलता । ऐसा किसी संयोग से नही हुआ, बल्कि इस पवित्र-ज्योति को सत्य के खोजियों के लिए क़ियामत (प्रलव) तक सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी ईश्वर ने खुद ले ली हैं, जैसा कि कहा, ’’इस जिक्र (पवित्र कुरआन) को हमने ही उतारा हैं और हम स्वंय उसके रक्षक हैं।‘‘ कुरआन, 15ः9
अतः सत्य प्रेमियों को चाहिए कि पवित्र कु़रआन और मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षाओ का अवश्य् अध्ययन करें, ताकि सही रहनुमाई मिल सके। आप इस पवित्र कुरआन और अन्तिम संदेष्ता मुहम्मद (सल्ल0)पवित्र जीवनी के अध्ययन के बाद पाएगे कि इनमें वे सारी शिक्षाए मूलरूप से मौजूद हैं, जो विभिन्न समुदायो और विभिन्न देशॊ में समय-समय पर आरम्भ से ईश्वर की ओर से उतारी जाती रही हैं। मुहम्मद(सल्ल0)
से पूर्व आए हुए सम्पूर्ण पैगम्बर (संदेश्टा) ईष्वर के सच्चे और अतिप्रिय बन्दे थें। मुसलमान होने के लिए जरूरी क़रार दिया गया हैं कि मुहम्मद (सल्ल0) के साथ-साथ उन सबको सच्चा स्वीकार किया जाए। उन पर ईमान लाया जाए। उनमें से किसी एक का भी इन्कार मनुश्य को सत्य धर्म (दीने-इस्लामी) से निकाल बाहर कर देता हैं। कुरआॅन में हैं-
’’ऐ मुहम्मद ! कहो हम ईश्वर को मानते हैं और उस शिक्षा को मानते हैं जो हम पर उतारी गई हैं। इसके साथ ही हम उन शिक्षाओं को भी मानते हैं, जो इब्राहीम (अलैहि0), इस्माईल (अलैहि0), इसहाक़ (अलैहि0), याकूब (अलैहि0)और उनकी सन्तान पर उतारी गई थीं और हिदायतों पर भी ईमान रखते हैं, जो मूसा (अलैहि0), ईसा (अलैहि0) और दूसरे पैगम्बरों को उनके पालनहार की ओर से दी गई। हम उनके बीच अन्तर नही करते और हम अल्लाह के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।‘‘
भाइयों ! आप ’सत्य-धर्म‘ (इस्लाम) और उसके लानेवाले के जीवन-चरित्र से परिचित होने का कष्ट तो करें। किसी बात या दृष्टिकोण को स्वीकार या स्वीकार करने का प्रश्न तो बाद में पैदा होता हैं।
स्रोत : http://www.c9soft.com/islamsabkeliye/article.php?event=detail&id=56
4 टिप्पणियां:
ईश्वर हर बंदे का एक ही है । सारे धर्मों का मूल तत्व एक ही है फिर पूजा विधी से क्या फर्क पडता है । हरेक को यह स्वतंत्रता होनी चाहिये कि वह किस धर्म के अनुसरण से अपनी जिंदगी गुज़ारना चाहता है । ज़ोर जबरदस्ती से कोई बात मनवाई नही जा सकती ।
जानकारी से भरा लेख !
आभार !
"यह बात भी सर्वमान्य वास्तविकता हैं कि ईश्वरी ग्रन्थों में से केवल पवित्र कु़रआन और ईश्वर के संदेष्टओं में से केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ही एक ऐसी हस्ती हैं,जिनका चरित्र और मार्ग-दर्शन इस समय संसार में ज्यों माजूद हैं और किसी भी परिवर्तन से सुरक्षित हैं और इतिहास गवाह हैं कि जहा पिछले संदेष्टओं के आचरण और उनकी शिक्षाओं का इस समय ठीक-ठीक मौजूद होना तो दूर रहा,उनके दो चार सौ वर्ष बाद भी उनके ठीक-ठीक दुनिया में मौजूद होने का प्रमाण नही मिलता .."-
---बस यह उपरोक्त भाव, विचार व कथन ही सब झगड़े की जड़ है ..जो मुस्लिमों को अतिवादी ,असहिष्णु बनाता व कहलवाता है ...व सर्व धर्म सम भाव के विचार में पलीता लगा देता है......
शनिवार १७-९-११ को आपकी पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया पधार कर अपने सुविचार ज़रूर दें ...!!आभार.
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