ऐसा दुर्गा मंदिर जहां चढ़ता है गांजा
खगड़िया, एजेंसी
विविधता से भरे भारत में देवी-देवताओं के मंदिरों में अलग-अलग ढंग से पूजा अर्चना के उदाहरण मिलते हैं। इसी क्रम में बिहार के खगड़िया का मां दुर्गा का मंदिर भी शुमार है, जहां श्रद्धालु देवी मां को प्रसन्न करने के लिए गांजा और दूध चढ़ाते हैं।
जिले में मानसी सहरसा रेलखंड पर घमारा स्टेशन के समीप स्थित यह दुर्गा मंदिर कोसी क्षेत्र के प्रमुख शक्तिपीठ में शामिल है। यहां देवी दुर्गा के कात्यायिनी स्वरूप की पूजा अर्चना होती है। मंदिर के पुजारी सुरेंद्र भगत ने बताया कि कई वर्ष से चली आ रही परंपरा के तहत श्रद्धालु यहां देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए कच्चा दूध तथा गांजा चढाते हैं। अब तक हिंदू धर्म में भगवान शिव के मंदिरों में भांग, धतूरा और दूध चढ़ाने की प्रथा सुनने को मिलती है। यहां के बारे में किवंदती है कि देवी दुर्गा की बायीं भुजा यहीं गिरी थी। नवरात्र के अवसर पर यहां भक्तों का उत्साह और उनकी श्रद्धा देखते ही बनती है। विशेष आयोजन षष्ठी के दिन देवी दुर्गा के कात्यायिनी स्वएप की पूजा अर्चना के दौरान होता है। यहां लोग दूर-दराज के इलाके से विशेष पूजा में भाग लेने आते हैं। साल भर आगमन के अलावा यहां सोमवार और शुक्रवार को लोगों की भीड़ के कारण मेले जैसा दृश्य होता है। भगत ने बताया कि मंदिर के इस महत्व को लेकर पौराणिक कथा चली आ रही है। इस कथा के अनुसार देवी पार्वती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ किया था, जिसमें भगवान शिव को न्यौता नहीं दिया गया था। भगवान शिव ने इसे अपना अनादर माना और देवी पार्वती को उक्त अनुष्ठान में जाने से मना कर दिया। भगत ने बताया कि किवंदती के अनुसार, पार्वती ने भगवान शिव के आदेश को अनसुना कर दिया और यज्ञ में शामिल होने चली गयी। बिना आमंत्रण के यहां आयी पार्वती के इस कदम पर उपस्थित लोगों ने व्यंग्य किया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की छींटाकशीं से आहत मां पार्वती यज्ञ में बने हवन कुंड में कूद पड़ी। इससे क्रोधित होकर भगवान शंकर तांडव करने लगे थे। इसी दौरान देवी की बायीं भुजा कटकर खगड़िया में गिरी। भगत ने बताया कि बहुत पहले श्रीपत महाराज नामक पशुपालक द्वारा मां की पूजा अर्चना की जाती थी। पशुपालकों की अधिकता के कारण यहां एक परंपरा बन गयी थी कि पशु का पहला दूध देवी को चढ़ाया जाएगा। पशुपालकों का विश्वास था कि दूध चढ़ाने से उनके दुधारू पशुओं पर कभी कोई बाधा नहीं आयेगी। श्रीपत महाराज को गांजा बहुत प्रिय था और एक दिन जंगल में बाघ ने उसे शिकार बना लिया। यहीं से दूध के बाद गांजा चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गयी। श्रद्धालुओं के बीच लोकप्रियता को देखते हुए जनप्रतिनिधियों ने कई बार शक्तिपीठ को पर्यटनस्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की, लेकिन अभी तक इस मंदिर को अपना हक नहीं मिल पाया है।
Source : हिन्दुस्तान दैनिक
http://www.livehindustan.com/news/desh/mustread/article1-Durga-Temple-332-332-193909.html