Source : http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-242306.htmlबाधा को लांघकर आगे बढ़ने की चेष्टा करना जीवों का स्वाभाविक धर्म है। ऐसी बात नहीं है कि यह मनुष्य की ही विशेषता है। किंतु यह जो बंधनों से जुड़ी बाधाएं हैं, इन पर जीत हासिल करने के लिए केवल शारीरिक शक्ति काफी नहीं है, इसके लिए मानसिक व आध्यात्मिक शक्ति की भी जरूरत है। पशुओं में शारीरिक शक्ति बहुत रहते हुए भी वे मानसिक शक्ति के अभाव के कारण बहुत दूर तक आगे बढ़ नहीं पाते। और आध्यात्मिक शक्ति के नाम पर तो उनके पास कुछ है ही नहीं। मान लीजिए, एक बाधा आई। पशु शक्ति द्वारा उस बाधा को पार करना चाहेगा। मनुष्य चिंतन करेगा, सोचेगा, बुद्धि की सहायता से कोई नया उपाय निकालकर बाधा को लांघकर चला जाएगा।
यह स्मरण रखना होगा कि यह जो बाधा है, इससे भी बड़ी बाधा है- मानसिक, आध्यात्मिक। किंतु मानसिक क्षेत्र में मनुष्य की मुख्य बाधा है अंधविश्वास। मनुष्य बड़ा होकर, लिखना-पढ़ना सीखकर भी इसके बंधन से मुक्त नहीं हो पाता। वह अक्सर असहाय होकर उसके सामने आत्मसमर्पण करता है। मैं जानता, समझता हूं अलग चीज है और करता हूं अलग तरह का काम। क्यों दूसरी तरह का काम करता हूं? क्योंकि उसका विरोध करने लायक मानसिक साहस नहीं है। हम समझ जाते हैं कि अमुक रोग होने पर अमुक दवा उचित है। करते भी ऐसा ही हैं, किंतु भय भी है। इसलिए हम विशेष देवी-देवता की छिप-छिपकर पूजा भी करते हैं। यह एक भारी दुर्बलता है। इस दुर्बलता को अंग्रेजी में कहते हैं डॉग्मा।इसके बाद अंतिम बाधा है आध्यात्मिक जगत की बाधा। इस बाधा के खिलाफ जोरदार जंग छेड़ने की आवश्यकता है। इसके लिए जरूरी है कि दुनिया भर के लोगों में भागवत को प्रतिष्ठापित किया जाए, तभी आध्यात्मिक बाधाएं दूर हो सकेंगी। इन बाधाओं के दूर होने पर ही मनुष्य परम मुक्ति की राह पर जा सकेगा। यही है मनुष्य की प्रगति का लक्षण।
यह स्मरण रखना होगा कि यह जो बाधा है, इससे भी बड़ी बाधा है- मानसिक, आध्यात्मिक। किंतु मानसिक क्षेत्र में मनुष्य की मुख्य बाधा है अंधविश्वास। मनुष्य बड़ा होकर, लिखना-पढ़ना सीखकर भी इसके बंधन से मुक्त नहीं हो पाता। वह अक्सर असहाय होकर उसके सामने आत्मसमर्पण करता है। मैं जानता, समझता हूं अलग चीज है और करता हूं अलग तरह का काम। क्यों दूसरी तरह का काम करता हूं? क्योंकि उसका विरोध करने लायक मानसिक साहस नहीं है। हम समझ जाते हैं कि अमुक रोग होने पर अमुक दवा उचित है। करते भी ऐसा ही हैं, किंतु भय भी है। इसलिए हम विशेष देवी-देवता की छिप-छिपकर पूजा भी करते हैं। यह एक भारी दुर्बलता है। इस दुर्बलता को अंग्रेजी में कहते हैं डॉग्मा।इसके बाद अंतिम बाधा है आध्यात्मिक जगत की बाधा। इस बाधा के खिलाफ जोरदार जंग छेड़ने की आवश्यकता है। इसके लिए जरूरी है कि दुनिया भर के लोगों में भागवत को प्रतिष्ठापित किया जाए, तभी आध्यात्मिक बाधाएं दूर हो सकेंगी। इन बाधाओं के दूर होने पर ही मनुष्य परम मुक्ति की राह पर जा सकेगा। यही है मनुष्य की प्रगति का लक्षण।